CURRENT AFFAIRS – 06/09/2024
- CURRENT AFFAIRS – 06/09/2024
- Kerala tops citizen-centric reforms categories in Centre’s latest rankings / केंद्र की ताजा रैंकिंग में नागरिक केंद्रित सुधार श्रेणियों में केरल शीर्ष पर है
- Close ties between agencies globally needed to tackle new-age crimes, says official / अधिकारी ने कहा कि नए युग के अपराधों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर एजेंसियों के बीच घनिष्ठ संबंधों की जरूरत है
- What is vertical fiscal imbalance? / ऊर्ध्वाधर राजकोषीय असंतुलन क्या है?
- Can Kerala access funds from the Loss and Damage Fund? / क्या केरल हानि और क्षति कोष से धन प्राप्त कर सकता है?
- Valley Fever / वैली फीवर
- The Food Security Act has revamped the PDS / खाद्य सुरक्षा अधिनियम ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार किया है
CURRENT AFFAIRS – 06/09/2024
Kerala tops citizen-centric reforms categories in Centre’s latest rankings / केंद्र की ताजा रैंकिंग में नागरिक केंद्रित सुधार श्रेणियों में केरल शीर्ष पर है
Syllabus : GS 2 : Governance
Source : The Hindu
Kerala’s recognition as a leader in business and citizen-centric reforms by the Union Ministry of Commerce and Industry highlights the state’s strides in improving the ease of doing business and public service delivery.
- The state leveraged digital tools and policy reforms to enhance efficiency and responsiveness across multiple sectors.
Announcement
- Kerala emerged as a top performer in two business-centric and seven citizen-centric reform categories in rankings by the Union Ministry of Commerce and Industry.
- Kerala’s Industries Minister, P. Rajeeve, received the Business Reforms Action Plan 2022 (BRAP 22) award from Union Minister of Commerce, Piyush Goyal.
Business-Centric Reforms
- Kerala excelled in two key business reforms:
- Facilitating utility permits for businesses.
- Improving the ease of paying taxes.
Citizen-Centric Reforms
- Kerala was recognized for top achievements in seven areas, including:
- Online single window system.
- Simplifying certificate issuance by Urban Local Bodies (ULBs) and the Department of Revenue.
- Utility permit facilitation.
- Public distribution system (Department of Food and Civil Supplies).
- Transport sector improvements.
- Employment exchange management.
Positive Feedback
- Kerala received over 95% positive feedback from businesses, recognizing improvements in these nine reform areas.
Technological Advancements
- The State upgraded service delivery using digital tools and cutting-edge technology, contributing to its success.
केंद्र की ताजा रैंकिंग में नागरिक केंद्रित सुधार श्रेणियों में केरल शीर्ष पर है
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा केरल को व्यवसाय और नागरिक-केंद्रित सुधारों में अग्रणी के रूप में मान्यता देना, व्यवसाय करने में आसानी और सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार के लिए राज्य की प्रगति को दर्शाता है।
- राज्य ने कई क्षेत्रों में दक्षता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए डिजिटल उपकरणों और नीति सुधारों का लाभ उठाया।
घोषणा
- केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा की गई रैंकिंग में केरल दो व्यवसाय-केंद्रित और सात नागरिक-केंद्रित सुधार श्रेणियों में शीर्ष प्रदर्शनकर्ता के रूप में उभरा।
- केरल के उद्योग मंत्री पी. राजीव ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से व्यवसाय सुधार कार्य योजना 2022 (BRAP 22) पुरस्कार प्राप्त किया।
व्यवसाय-केंद्रित सुधार
- केरल ने दो प्रमुख व्यवसाय सुधारों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया:
- व्यवसायों के लिए उपयोगिता परमिट की सुविधा प्रदान करना।
- करों का भुगतान करने में आसानी में सुधार करना।
नागरिक-केंद्रित सुधार
- केरल को सात क्षेत्रों में शीर्ष उपलब्धियों के लिए मान्यता दी गई, जिनमें शामिल हैं:
- ऑनलाइन सिंगल विंडो सिस्टम।
- शहरी स्थानीय निकायों (ULB) और राजस्व विभाग द्वारा प्रमाण पत्र जारी करने को सरल बनाना।
- उपयोगिता परमिट सुविधा।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग)।
- परिवहन क्षेत्र में सुधार।
- रोजगार विनिमय प्रबंधन।
सकारात्मक प्रतिक्रिया
- केरल को व्यवसायों से 95% से अधिक सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली, जिसमें इन नौ सुधार क्षेत्रों में सुधार को मान्यता दी गई।
तकनीकी उन्नति
- राज्य ने डिजिटल उपकरणों और अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करके सेवा वितरण को उन्नत किया, जिससे इसकी सफलता में योगदान मिला।
Close ties between agencies globally needed to tackle new-age crimes, says official / अधिकारी ने कहा कि नए युग के अपराधों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर एजेंसियों के बीच घनिष्ठ संबंधों की जरूरत है
Syllabus : GS 2 : International Relations
Source : The Hindu
The 10th Interpol Liaison Officers (ILOs) conference, organised by the CBI, focused on strengthening international law enforcement partnerships.
- Union Home Secretary Govind Mohan emphasised the importance of global cooperation in combating new-age crimes like cyber-enabled frauds, terrorism, and transnational crime.
Importance of Global Cooperation in Combating New-Age Crimes
- Transnational Nature of Crimes: New-age crimes, such as cyber-enabled frauds, terrorism, human trafficking, and drug smuggling, transcend borders, requiring international cooperation for effective prevention and investigation.
- Digital and Foreign Evidence: Investigations increasingly depend on digital evidence and information located abroad, making collaboration between nations crucial.
- Real-Time Coordination: Timely information sharing and real-time coordination between global law enforcement agencies are essential to counter rapid criminal activities.
Challenges in Global Cooperation
- Jurisdictional Conflicts: Differing legal frameworks and jurisdictional boundaries complicate cross-border investigations.
- Data Privacy Concerns: Striking a balance between privacy laws and the need for data exchange in criminal investigations remains a challenge.
- Limited Resources: Developing countries may face challenges in accessing advanced technology and expertise needed to combat sophisticated cybercrimes.
- Language and Cultural Barriers: Differences in language, legal practices, and cultural norms can hinder seamless international cooperation.
India’s Efforts in Combating New-Age Crimes
- Interpol and Europol Cooperation: Signed a working arrangement with Europol in 2024, enhancing cross-border law enforcement collaboration.
- CBI Global Operation Centre: Established in 2022 to facilitate international investigations and cooperation.
- Interpol Global Academy Network: Joined in 2023, allowing Indian law enforcement access to global best practices and training.
- Cybercrime Reporting Portal: Launched to streamline reporting and investigation of cyber-enabled crimes across India.
Way Forward
- Strengthening Legal Frameworks: Harmonising international laws and treaties can facilitate smoother cooperation.
- Capacity Building: Training law enforcement personnel and investing in digital infrastructure can help countries keep pace with evolving threats.
- Enhanced Information Sharing: Platforms like Interpol, Europol, and UNODC can be further strengthened for real-time data exchange and coordination.
- Public-Private Collaboration: Engaging tech companies to assist in cybersecurity and tracking digital crimes can boost crime prevention efforts.
अधिकारी ने कहा कि नए युग के अपराधों से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर एजेंसियों के बीच घनिष्ठ संबंधों की जरूरत है
सीबीआई द्वारा आयोजित 10वें इंटरपोल संपर्क अधिकारी (आईएलओ) सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय कानून प्रवर्तन साझेदारी को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन ने साइबर-सक्षम धोखाधड़ी, आतंकवाद और अंतरराष्ट्रीय अपराध जैसे नए युग के अपराधों से निपटने में वैश्विक सहयोग के महत्व पर जोर दिया।
नए युग के अपराधों से निपटने में वैश्विक सहयोग का महत्व
- अपराधों की अंतरराष्ट्रीय प्रकृति: साइबर-सक्षम धोखाधड़ी, आतंकवाद, मानव तस्करी और नशीली दवाओं की तस्करी जैसे नए युग के अपराध सीमाओं को पार करते हैं, प्रभावी रोकथाम और जांच के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है।
- डिजिटल और विदेशी साक्ष्य: जांच तेजी से डिजिटल साक्ष्य और विदेशों में स्थित सूचनाओं पर निर्भर करती है, जिससे देशों के बीच सहयोग महत्वपूर्ण हो जाता है।
- वास्तविक समय समन्वय: वैश्विक कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच समय पर सूचना साझा करना और वास्तविक समय समन्वय तेजी से बढ़ती आपराधिक गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए आवश्यक है।
वैश्विक सहयोग में चुनौतियाँ
- न्यायालयीय संघर्ष: अलग-अलग कानूनी ढांचे और न्यायक्षेत्रीय सीमाएँ सीमा पार जाँच को जटिल बनाती हैं।
- डेटा गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: गोपनीयता कानूनों और आपराधिक जाँच में डेटा विनिमय की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाना एक चुनौती बनी हुई है।
- सीमित संसाधन: विकासशील देशों को परिष्कृत साइबर अपराधों से निपटने के लिए आवश्यक उन्नत तकनीक और विशेषज्ञता तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- भाषा और सांस्कृतिक बाधाएँ: भाषा, कानूनी प्रथाओं और सांस्कृतिक मानदंडों में अंतर निर्बाध अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में बाधा डाल सकते हैं।
नए युग के अपराधों से निपटने में भारत के प्रयास
- इंटरपोल और यूरोपोल सहयोग: 2024 में यूरोपोल के साथ एक कार्य व्यवस्था पर हस्ताक्षर किए, जिससे सीमा पार कानून प्रवर्तन सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
- सीबीआई ग्लोबल ऑपरेशन सेंटर: अंतर्राष्ट्रीय जांच और सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए 2022 में स्थापित किया गया।
- इंटरपोल ग्लोबल एकेडमी नेटवर्क: 2023 में शामिल हुआ, जिससे भारतीय कानून प्रवर्तन को वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं और प्रशिक्षण तक पहुँच प्राप्त होगी।
- साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल: पूरे भारत में साइबर-सक्षम अपराधों की रिपोर्टिंग और जाँच को कारगर बनाने के लिए लॉन्च किया गया।
आगे की राह
- कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना: अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधियों में सामंजस्य स्थापित करने से सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है।
- क्षमता निर्माण: कानून प्रवर्तन कर्मियों को प्रशिक्षित करना और डिजिटल बुनियादी ढाँचे में निवेश करने से देशों को उभरते खतरों के साथ तालमेल बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
- बढ़ी हुई सूचना साझाकरण: इंटरपोल, यूरोपोल और यूएनओडीसी जैसे प्लेटफ़ॉर्म को वास्तविक समय के डेटा एक्सचेंज और समन्वय के लिए और मज़बूत किया जा सकता है।
- सार्वजनिक-निजी सहयोग: साइबर सुरक्षा में सहायता करने और डिजिटल अपराधों पर नज़र रखने के लिए तकनीकी कंपनियों को शामिल करने से अपराध की रोकथाम के प्रयासों को बढ़ावा मिल सकता है।
What is vertical fiscal imbalance? / ऊर्ध्वाधर राजकोषीय असंतुलन क्या है?
Syllabus : GS 2 : Indian Polity
Source : The Hindu
The news addresses India’s Vertical Fiscal Imbalance (VFI), where States handle most expenditure but collect less revenue, relying on Union transfers.
- The 15th Finance Commission highlighted this issue, suggesting that increasing tax devolution to States could balance finances, enhance spending efficiency, and support equitable fiscal federalism.
Introduction to Vertical Fiscal Imbalance (VFI)
- The 15th Finance Commission highlighted that States in India face a significant Vertical Fiscal Imbalance (VFI).
- States incur 61% of the revenue expenditure but collect only 38% of the revenue receipts.
- This imbalance means that States rely heavily on transfers from the Union government for their expenditures.
Why VFI Needs Attention
- Constitutional Division of Duties: The Union and State governments have constitutionally defined financial responsibilities. The Union government collects major taxes like Personal Income Tax and Corporation Tax, while States handle expenditures on publicly provided goods and services.
- Efficiency Considerations: To maximise efficiency, it’s ideal for the government closest to the service users to manage expenditures. However, States struggle due to the revenue gap.
Finance Commission’s Role
- The Finance Commission addresses VFI by deciding on two key areas:
- How to distribute the Union government’s tax revenue to States.
- How to allocate these resources among individual States.
- VFI is related to the first area, focusing on how much tax revenue from the Union is devolved to States.
Current Financial Transfers
- Grants and Transfers: Besides tax devolution, Finance Commissions recommend grants under Article 275 of the Constitution for specific needs. Other transfers occur under Article 282 through centrally sponsored and central sector schemes, but these are conditional.
- Untied Transfers: Tax devolution is the only transfer that is unconditional and untied.
Estimating VFI in India
- There is a need to outline a method to estimate VFI at the aggregate level for all States, using a ratio of total own revenue receipts plus tax devolution to own revenue expenditure.
- If this ratio is less than 1, it indicates a VFI, with the deficit being used as a proxy for the imbalance.
- To eliminate VFI, the share of tax devolution needs to rise to about 48.94%, but the 14th and 15th Finance Commissions recommended only 42% and 41% respectively.
Call for Increased Tax Devolution
- Many States advocate for the 16th Finance Commission to fix the share of tax devolution at 50% of the net proceeds.
- Benefits: Higher devolution would provide States with more untied resources, align expenditures with local needs, and enhance the efficiency of spending, contributing to a more balanced fiscal federalism.
Conclusion
- Addressing VFI through increased tax devolution would support a more equitable distribution of fiscal resources and improve the efficiency of State expenditures, fostering a healthier system of cooperative fiscal federalism.
ऊर्ध्वाधर राजकोषीय असंतुलन क्या है?
यह खबर भारत के ऊर्ध्वाधर राजकोषीय असंतुलन (वीएफआई) को संबोधित करती है, जहां राज्य अधिकांश व्यय संभालते हैं, लेकिन कम राजस्व एकत्र करते हैं, जो संघ के हस्तांतरण पर निर्भर करता है।
- 15वें वित्त आयोग ने इस मुद्दे को उजागर किया, जिसमें सुझाव दिया गया कि राज्यों को कर हस्तांतरण बढ़ाने से वित्त संतुलन हो सकता है, व्यय दक्षता में वृद्धि हो सकती है और न्यायसंगत राजकोषीय संघवाद का समर्थन हो सकता है।
ऊर्ध्वाधर राजकोषीय असंतुलन (VFI) का परिचय
- 15वें वित्त आयोग ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में राज्यों को एक महत्वपूर्ण ऊर्ध्वाधर राजकोषीय असंतुलन (VFI) का सामना करना पड़ रहा है।
- राज्य राजस्व व्यय का 61% वहन करते हैं, लेकिन राजस्व प्राप्तियों का केवल 38% ही एकत्र करते हैं।
- इस असंतुलन का अर्थ है कि राज्य अपने व्यय के लिए केंद्र सरकार से प्राप्त धन पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
VFI पर ध्यान देने की आवश्यकता क्यों है
- संवैधानिक कर्तव्यों का विभाजन: संघ और राज्य सरकारों ने संवैधानिक रूप से वित्तीय जिम्मेदारियों को परिभाषित किया है। केंद्र सरकार व्यक्तिगत आयकर और निगम कर जैसे प्रमुख कर एकत्र करती है, जबकि राज्य सार्वजनिक रूप से प्रदान की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर व्यय संभालते हैं।
- दक्षता संबंधी विचार: दक्षता को अधिकतम करने के लिए, यह आदर्श है कि सेवा उपयोगकर्ताओं के सबसे करीब की सरकार व्यय का प्रबंधन करे। हालाँकि, राजस्व अंतर के कारण राज्य संघर्ष करते हैं।
वित्त आयोग की भूमिका
- वित्त आयोग दो प्रमुख क्षेत्रों पर निर्णय लेकर VFI को संबोधित करता है:
- केंद्र सरकार के कर राजस्व को राज्यों में कैसे वितरित किया जाए।
- इन संसाधनों को अलग-अलग राज्यों के बीच कैसे आवंटित किया जाए।
- VFI पहले क्षेत्र से संबंधित है, जो इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि संघ से कितना कर राजस्व राज्यों को हस्तांतरित किया जाता है।
वर्तमान वित्तीय हस्तांतरण
- अनुदान और हस्तांतरण: कर हस्तांतरण के अलावा, वित्त आयोग विशिष्ट आवश्यकताओं के लिए संविधान के अनुच्छेद 275 के तहत अनुदान की सिफारिश करता है। अन्य हस्तांतरण अनुच्छेद 282 के तहत केंद्र प्रायोजित और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के माध्यम से होते हैं, लेकिन ये सशर्त होते हैं।
- अनबंधित हस्तांतरण: कर हस्तांतरण एकमात्र ऐसा हस्तांतरण है जो बिना शर्त और अनबंधित है।
भारत में VFI का अनुमान लगाना
- कुल राजस्व प्राप्तियों और कर हस्तांतरण के अनुपात का उपयोग करके सभी राज्यों के लिए समग्र स्तर पर VFI का अनुमान लगाने के लिए एक विधि की रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता है।
- यदि यह अनुपात 1 से कम है, तो यह VFI को इंगित करता है, जिसमें घाटे का उपयोग असंतुलन के लिए प्रॉक्सी के रूप में किया जाता है।
- VFI को खत्म करने के लिए, कर हस्तांतरण का हिस्सा लगभग 48.94% तक बढ़ने की जरूरत है, लेकिन 14वें और 15वें वित्त आयोगों ने क्रमशः केवल 42% और 41% की सिफारिश की है।
कर हस्तांतरण में वृद्धि की मांग
- कई राज्य 16वें वित्त आयोग से कर हस्तांतरण का हिस्सा शुद्ध आय का 50% तय करने की वकालत करते हैं।
- लाभ: उच्च हस्तांतरण से राज्यों को अधिक असंबद्ध संसाधन मिलेंगे, व्यय को स्थानीय आवश्यकताओं के साथ संरेखित किया जा सकेगा, तथा व्यय की दक्षता में वृद्धि होगी, जिससे अधिक संतुलित राजकोषीय संघवाद में योगदान मिलेगा।
निष्कर्ष
- कर हस्तांतरण में वृद्धि के माध्यम से वीएफआई को संबोधित करने से राजकोषीय संसाधनों का अधिक न्यायसंगत वितरण होगा तथा राज्य व्यय की दक्षता में सुधार होगा, जिससे सहकारी राजकोषीय संघवाद की एक स्वस्थ प्रणाली को बढ़ावा मिलेगा।
Can Kerala access funds from the Loss and Damage Fund? / क्या केरल हानि और क्षति कोष से धन प्राप्त कर सकता है?
Syllabus : GS 3 : Disaster and disaster management
Source : The Hindu
Recent landslides in Kerala’s Wayanad district have highlighted the urgent need for effective climate finance.
- The UNFCCC’s Loss and Damage Fund, established in 2022, aims to support regions impacted by climate change.
- However, challenges like bureaucratic delays and assessment gaps complicate access, underscoring India’s need for better funding mechanisms.
India’s Role and Challenges
- Damage from Disasters: India has experienced over $56 billion in damages from weather-related disasters between 2019 and 2023.
- Focus on Mitigation: India’s National Climate Action Policy and budgets have prioritised mitigation over adaptation, resulting in less engagement in Loss and Damage dialogues.
- Need for Framework: There is an urgent need for a clear legal and policy framework in India to manage climate finance, especially for adaptation and loss and damage, and to support locally led adaptation efforts.
- Expectations: The introduction of a climate finance taxonomy in the Union Budget 2024 raises hopes for increased international climate finance but lacks clear guidelines for accessing loss and damage funds.
What is the Loss and Damage Fund (LDF)?
- Establishment: The LDF was established at the 2022 UNFCCC Conference (COP27) in Egypt.
- Purpose: It aims to provide financial support for regions suffering both economic and non-economic losses caused by climate change, including extreme weather events and slow-onset processes like rising sea levels.
- Oversight and Management: Governing Board: Oversees the LDF and determines the disbursement of resources.
- Interim Trustee: The World Bank serves as the interim trustee.
- Disbursement Mechanisms: The Board is developing mechanisms for accessing funds, including direct access, small grants, and rapid disbursement options.
- Challenges: Climate funds, including the LDF, are often criticized for being slow to become accessible immediately after a disaster, which can be particularly problematic for local communities at the sub-national level.
Need for State-Level Support:
- States like Kerala, which face acute climate impacts, bear substantial disaster recovery costs.
- The Rebuild Kerala Development Programme is an example of state-led recovery funded through international loans, highlighting the need for dedicated climate finance.
Challenges in Accessing the Fund:
- Bureaucratic Delays: Climate funds, including the Loss and Damage Fund (LDF), are often slow to disburse, particularly after disasters, affecting immediate relief efforts.
- Lack of Standardised Assessments: Absence of a comprehensive method for evaluating disaster-related damages, especially from slow-onset events, can hinder effective fund allocation.
- Centralised Systems: Current mechanisms for climate finance are largely centralised, potentially limiting the effectiveness of fund distribution at the local level.
Way Forward:
- Develop Local Frameworks: India needs clear legal and policy frameworks to streamline climate finance, focusing on locally led adaptation and clearer guidelines for accessing loss and damage funds.
- Advocate for Decentralization: In international forums, India should push for more decentralised disbursement methods to ensure funds reach affected communities more efficiently.
- Improve Assessment Processes: Establish standardised processes for assessing and quantifying disaster-related damages to better qualify for and utilise LDF resources.
क्या केरल हानि और क्षति कोष से धन प्राप्त कर सकता है?
केरल के वायनाड जिले में हाल ही में हुए भूस्खलन ने प्रभावी जलवायु वित्त की तत्काल आवश्यकता को उजागर किया है।
- 2022 में स्थापित UNFCCC के नुकसान और क्षति कोष का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों का समर्थन करना है।
- हालाँकि, नौकरशाही की देरी और मूल्यांकन अंतराल जैसी चुनौतियाँ पहुँच को जटिल बनाती हैं, जो भारत की बेहतर वित्तपोषण प्रणाली की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।
भारत की भूमिका और चुनौतियाँ
- आपदाओं से नुकसान: भारत ने 2019 और 2023 के बीच मौसम संबंधी आपदाओं से 56 बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान झेला है।
- शमन पर ध्यान: भारत की राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई नीति और बजट ने अनुकूलन पर शमन को प्राथमिकता दी है, जिसके परिणामस्वरूप हानि और क्षति संवादों में कम भागीदारी हुई है।
- ढांचे की आवश्यकता: जलवायु वित्त का प्रबंधन करने के लिए भारत में एक स्पष्ट कानूनी और नीतिगत ढाँचे की तत्काल आवश्यकता है, विशेष रूप से अनुकूलन और हानि और क्षति के लिए, और स्थानीय स्तर पर संचालित अनुकूलन प्रयासों का समर्थन करने के लिए।
- अपेक्षाएँ: केंद्रीय बजट 2024 में जलवायु वित्त वर्गीकरण की शुरूआत से अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त में वृद्धि की उम्मीदें जगी हैं, लेकिन हानि और क्षति निधि तक पहुँचने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव है।
हानि और क्षति निधि (LDF) क्या है?
- स्थापना: LDF की स्थापना मिस्र में 2022 UNFCCC सम्मेलन (COP27) में की गई थी।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के कारण आर्थिक और गैर-आर्थिक दोनों तरह के नुकसान झेल रहे क्षेत्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है, जिसमें चरम मौसम की घटनाएँ और समुद्र के बढ़ते स्तर जैसी धीमी गति से शुरू होने वाली प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
- निगरानी और प्रबंधन: शासी बोर्ड: एलडीएफ की देखरेख करता है और संसाधनों के वितरण का निर्धारण करता है।
- अंतरिम ट्रस्टी: विश्व बैंक अंतरिम ट्रस्टी के रूप में कार्य करता है।
- वितरण तंत्र: बोर्ड प्रत्यक्ष पहुँच, छोटे अनुदान और त्वरित वितरण विकल्पों सहित निधियों तक पहुँचने के लिए तंत्र विकसित कर रहा है।
- चुनौतियाँ: एलडीएफ सहित जलवायु निधियों की अक्सर आपदा के तुरंत बाद पहुँच में धीमी गति के लिए आलोचना की जाती है, जो उप-राष्ट्रीय स्तर पर स्थानीय समुदायों के लिए विशेष रूप से समस्याग्रस्त हो सकती है।
राज्य-स्तरीय समर्थन की आवश्यकता:
- केरल जैसे राज्य, जो तीव्र जलवायु प्रभावों का सामना करते हैं, आपदा वसूली लागत का भारी वहन करते हैं।
- पुनर्निर्माण केरल विकास कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय ऋणों के माध्यम से वित्तपोषित राज्य-नेतृत्व वाली वसूली का एक उदाहरण है, जो समर्पित जलवायु वित्त की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
निधि तक पहुँचने में चुनौतियाँ:
- नौकरशाही देरी: हानि और क्षति निधि (LDF) सहित जलवायु निधि, अक्सर आपदाओं के बाद, वितरित करने में धीमी होती है, जिससे तत्काल राहत प्रयास प्रभावित होते हैं।
- मानकीकृत मूल्यांकन का अभाव: आपदा से संबंधित क्षति का मूल्यांकन करने के लिए एक व्यापक पद्धति का अभाव, विशेष रूप से धीमी गति से शुरू होने वाली घटनाओं से, प्रभावी निधि आवंटन में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- केंद्रीकृत प्रणाली: जलवायु वित्त के लिए वर्तमान तंत्र काफी हद तक केंद्रीकृत हैं, जो स्थानीय स्तर पर निधि वितरण की प्रभावशीलता को सीमित कर सकते हैं।
आगे की राह:
- स्थानीय रूपरेखाएँ विकसित करें: भारत को जलवायु वित्त को सुव्यवस्थित करने के लिए स्पष्ट कानूनी और नीतिगत रूपरेखाओं की आवश्यकता है, जो स्थानीय स्तर पर अनुकूलन पर ध्यान केंद्रित करें और हानि और क्षति निधि तक पहुँचने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश दें।
- विकेंद्रीकरण की वकालत: अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर, भारत को प्रभावित समुदायों तक अधिक कुशलता से निधि पहुँचना सुनिश्चित करने के लिए अधिक विकेंद्रीकृत संवितरण विधियों पर जोर देना चाहिए।
- मूल्यांकन प्रक्रियाओं में सुधार: LDF संसाधनों के लिए बेहतर योग्यता और उपयोग के लिए आपदा से संबंधित क्षति का आकलन और मात्रा निर्धारित करने के लिए मानकीकृत प्रक्रियाएँ स्थापित करें।
Valley Fever / वैली फीवर
Term In News
Valley fever, a fungal disease endemic to the western United States, is seeing a significant rise in cases across California, prompting concerns among health officials and researchers.
About Valley Fever:
- Valley Fever, also called coccidioidomycosis, is an infection caused by the fungus Coccidioides.
- The fungus lives in soil in some areas, including the southwestern United States and south-central Washington, as well as in parts of Mexico as well as Central and South America.
Transmission:
- People and animals can get Valley Fever by breathing in spores, generally from dust or disturbed soil, in areas where the fungus is found.
- Most people who breathe in spores do not get sick, but some people develop mild or severe forms of the disease.
- Valley fever does not generally spread from person to person or from animal to people, with rare exceptions due to organ transplantation or wound contact.
Symptoms:
- Most of the time, Valley fever doesn’t cause symptoms or symptoms go away on their own.
- Rarely, you can have ongoing lung issues or serious illness.
- Only about 1% of those who are symptomatic go on to develop severe disease. Serious complications include:
- Pnuemonia
- Fluid or pus in your lungs (pleural effusion or empyema).
- Acute respiratory distress syndrome (ARDS).
- Ruptured pockets of fluid or air in your lungs (hydropneumothorax).
- Disease spreads outside of your lungs (disseminated coccidioidomycosis). When coccidioidomycosis spreads to your brain, you can develop coccidioidal meningitis, a life-threatening condition.
- Treatment: Mild cases of valley fever usually resolve on their own. In more severe cases, doctors treat the infection with antifungal medications.
वैली फीवर
वैली फीवर, जो पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थानिक रूप से पाया जाने वाला एक फंगल रोग है, के मामलों में कैलिफोर्निया में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है, जिससे स्वास्थ्य अधिकारियों और शोधकर्ताओं में चिंता उत्पन्न हो गई है।
वैली फीवर के बारे में:
- वैली फीवर, जिसे कोक्सीडियोइडोमाइकोसिस भी कहा जाता है, फंगस कोक्सीडियोइड्स के कारण होने वाला संक्रमण है।
- यह फंगस दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण-मध्य वाशिंगटन के साथ-साथ मैक्सिको के कुछ हिस्सों और मध्य और दक्षिण अमेरिका में मिट्टी में पाया जाता है।
संचरण:
- लोगों और जानवरों को फंगस के पाए जाने वाले क्षेत्रों में आमतौर पर धूल या अशांत मिट्टी से बीजाणुओं को सांस के जरिए लेने से वैली फीवर हो सकता है।
- ज्यादातर लोग जो बीजाणुओं को सांस के जरिए अंदर लेते हैं, वे बीमार नहीं पड़ते, लेकिन कुछ लोगों में बीमारी के हल्के या गंभीर रूप विकसित हो जाते हैं।
- वैली फीवर आम तौर पर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति या जानवर से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है, कुछ अपवादों को छोड़कर जो अंग प्रत्यारोपण या घाव के संपर्क में आने के कारण होते हैं।
लक्षण:
- ज्यादातर मामलों में, वैली फीवर के लक्षण नहीं होते या लक्षण अपने आप ठीक हो जाते हैं।
- शायद ही कभी, आपको फेफड़ों की समस्या या गंभीर बीमारी हो सकती है।
- केवल 1% लोग ही गंभीर बीमारी विकसित करते हैं। गंभीर जटिलताओं में शामिल हैं:
- निमोनिया
- आपके फेफड़ों में तरल पदार्थ या मवाद (प्ल्यूरल इफ्यूशन या एम्पाइमा)।
- तीव्र श्वसन संकट सिंड्रोम (ARDS)।
- आपके फेफड़ों में तरल पदार्थ या हवा की फटी हुई जेबें (हाइड्रोपन्यूमोथोरैक्स)।
- रोग आपके फेफड़ों के बाहर फैलता है (डिसेमिनेटेड कोक्सीडियोइडोमाइकोसिस)। जब कोक्सीडियोइडोमाइकोसिस आपके मस्तिष्क में फैलता है, तो आपको कोक्सीडियोइडल मेनिन्जाइटिस हो सकता है, जो एक जानलेवा स्थिति है।
- उपचार: वैली फीवर के हल्के मामले आमतौर पर अपने आप ठीक हो जाते हैं। अधिक गंभीर मामलों में, डॉक्टर संक्रमण का इलाज एंटीफंगल दवाओं से करते हैं।
The Food Security Act has revamped the PDS / खाद्य सुरक्षा अधिनियम ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार किया है
Editorial Analysis: Syllabus : GS 2 : Social Justice – Development and management of social sector/services
Source : The Hindu
Context :
- The article discusses the impact of the National Food Security Act (NFSA) 2013 on the Public Distribution System (PDS), highlighting reduced leakages in food distribution since its implementation.
- It underscores reforms in early-adopting states and challenges with Aadhaar integration while calling for a focus on key systemic improvements.
Arguments in favour of Public Distribution System
- States Role: States that had undertaken PDS reforms had witnessed major improvements.
- Between 2004-5 and 2011-12, several early reforming States saw a dramatic reduction in leakages: Bihar (from 91% to 24%), Chhattisgarh (from 52% to 9%) and Odisha (from 76% to 25%).
- With the same package of PDS reforms being mandated by the NFSA 2013, there was hope that more States could improve.
- The NSS’s Household Consumption Expenditure Survey (HCES): is the first large-scale nationally representative survey after the implementation of the NFSA 2013 suggesting that PDS leakages were down to 22% in 2022-23.
Understanding the data and methodology
- Defining leakages: PDS “leakages” refer to the proportion of PDS rice and wheat released by the Food Corporation of India (FCI) that fails to reach consumers.
- Estimating leakages: Leakages are estimated by matching NSS data on household PDS purchases with “offtake” data reported in the Monthly Food Grain Bulletin of the Food Ministry.
- Grain distribution: From August 2022 to July 2023, PDS ration card holders received NFSA grain—five kilograms per person for “Priority” households and 35 kg per month for “Antyodaya” households. They also received PMGKAY grain until December 2022, when the Covid-19 relief program ended.
- Dual checks: To arrive at the estimates presented here, offtake under NFSA including tide-over rations, NonNFSA and PMGKAY is matched with HCES 2022-23 PDS purchase of (paid for and free) wheat and rice by households.
- Any mismatch between offtake and purchase is attributed to leakage, though there could be other reasons (transport losses, lags in supply and so on).
Why is there an underestimation?
- Expanded PDS by states: providing PDS grain to non-NFSA beneficiaries using central contributions (for example, tide-over rations and non-NFSA allocations) as well as State contributions (for example, local procurement).
- For example, Chhattisgarh’s food security act, passed in 2012, made the PDS quasi-universal using local procurement.
- The all-India leakage estimates of 17.6%-18.2% are underestimates, because they only take into account central contributions, and not State contributions.
- State financial support: There are 14 crore non-NFSA beneficiaries, of whom at the most six crore are supported entirely through State contributions.
- If we add the State’s contribution for State-supported non-NFSA beneficiaries to total offtake, the all-India leakage estimate rises to 22%.
Impact of NFSA on PDS coverage
- PDS reforms: included in the NFSA 2013 was an expansion of PDS coverage that was aimed at reducing exclusion errors, but had a ‘spillover effect’ on reducing leakages.
- Improvement over 2004-05: In 2011-12, before the NFSA, less than 50% of households had ration cards, and only about 40% were receiving anything from the PDS. At that time, just 24% of households were actually using the PDS.
- The improvement driven by reforms: in States such as Chhattisgarh and Odisha where the PDS coverage increased substantially in this period.
- For instance, in Chhattisgarh, there was a three-fold increase (from 21% to 63%) in the proportion of households using the PDS.
- According to HCES data, in 2022-23, the proportion of households buying from the PDS has increased further to 70%. In large part, this is the result of the rollout of the NFSA.
- Shortfall in NFSA Coverage: Despite improved coverage, the Centre is still below the NFSA mandate of covering 66% of the population (50% rural and 75% urban). Administrative data shows only 59% access the PDS as NFSA beneficiaries. According to the HCES, while 70% use the PDS, only 57%-61% have NFSA ration cards, with around 10% being non-NFSA beneficiaries.
- PDS reforms undertaken by early reforming States: such as Chhattisgarh and Odisha included reduction in PDS prices, doorstep delivery of foodgrains, digitisation of records, de-privatising management of PDS outlets by handing them over to panchayats, and self-help groups.
- Reduction in PDS leakages: By 2011-12, PDS leakages in early reforming states had already dropped significantly. Since then, more high-leakage states have followed suit. As per HCES 2022-23, leakage rates were 9% in Rajasthan, 21% in Jharkhand, and 23% in Uttar Pradesh, all previously high-leakage regions.
- Role of Aadhar reforms: Many believe that the integration of Aadhaar, especially Aadhaar-based biometric authentication (ABBA), led to the improvements in the PDS. Data from primary surveys, however, do not support this.
- Two surveys in 2017 in Jharkhand shed light on this issue. A study by Muralidharan, Niehaus and Sukhtankar found that leakages before the introduction of ABBA were already less than 20%.
- Drèze, Khera and Somanchi reported that the purchase-entitlement ratios (the proportion of entitlement that people actually purchased) in offline villages and ABBA villages were virtually the same — 94% and 93%, respectively. Both surveys found little evidence of ghost cards.
- Somewhat, leakages in States where the PDS traditionally worked better have not experienced further improvements; in fact, in some, estimated leakages have increased (example, in Tamil Nadu from 12% in 2011-12 to 25% in 2022-23).
Conclusion
- The PDS has become a functional instrument of social policy, playing a crucial role during the COVID-19 lockdowns.
- However, it remains vulnerable to “innovations” like cash transfer experiments and inappropriate technologies such as ABBA.
- The government should focus on addressing significant issues, like the delayed Census and including more nutritious food items, rather than derailing the system with unnecessary changes.
What is Food Security?
The concept of Food Security is multifaceted. Food is as essential for living as air is for breathing. But food security means something more than getting two square meals. It has following dimensions:
-
- Availability: It means food production within the country, food imports and the stock stored in government granaries.
- Accessibility: It means food is within reach of every person without any discrimination.
- Affordability: It implies that having enough money to buy sufficient, safe and nutritious food to meet one’s dietary needs.
- Thus, Food security is ensured in a country only when sufficient food is available for everyone, if everyone has the means to purchase food of acceptable quality, and if there are no barriers to access.
What is the Current Framework for Food Security in India?
- Constitutional Provision: Though the Indian Constitution does not have any explicit provision regarding right to food, the fundamental right to life enshrined in Article 21 of the Constitution can be interpreted to include the right to live with human dignity, which may include the right to food and other basic necessities.
- Buffer Stock: Food Corporation of India (FCI) has the prime responsibility of procuring the food grains at minimum support price (MSP) and stored in its warehouses at different locations and from there it is supplied to the state governments in terms of requirement.
- Public Distribution System: Over the years, Public Distribution System has become an important part of Government’s policy for management of the food economy in the country. PDS is supplemental in nature and is not intended to make available the entire requirement of any of the commodity.
- Under the PDS, presently the commodities namely wheat, rice, sugar and kerosene are being allocated to the States/UTs for distribution.
- Some States/UTs also distribute additional items of mass consumption through the PDS outlets such as pulses, edible oils, iodized salt, spices, etc.
- National Food Security Act, 2013 (NFSA): It marks a paradigm shift in the approach to food security from welfare to rights based approach.
- NFSA covers 75% of the rural population and 50% of the urban population under:
- Antyodaya Anna Yojana: It constitute the poorest of-the-poor, are entitled to receive 35 kg of foodgrains per household per month.
- Priority Households (PHH): Households covered under PHH category are entitled to receive 5 kg of foodgrains per person per month.
- The eldest woman of the household of age 18 years or above is mandated to be the head of the household for the purpose of issuing ration cards.
- In addition, the act lays down special provisions for children between the ages of 6 months and 14 years old, which allows them to receive a nutritious meal for free through a widespread network of Integrated Child Development Services (ICDS) centres, known as Anganwadi Centres.
What are the Challenges Related to Food Security in India?
- Deteriorating Soil Health: A key element of food production is healthy soil because nearly 95% of global food production depends on soil.
- Soil degradation due to excessive or inappropriate use of agrochemicals, deforestation and natural calamities is a significant challenge to sustainable food production. About one-third of the earth’s soil is already degraded.
- Invasive Weed Threats: In the past 15 years, India has faced more than 10 major invasive pest and weed attacks.
- Fall Armyworm (Pest) destroyed almost the entire maize crop in the country in 2018. India had to import maize in 2019 due to the damage caused by the pest in 2018.
- In 2020, locust attack was reported in districts of Rajasthan and Gujarat.
- Lack of Efficient Management Framework: India lacks strict management framwork for food security. Public Distribution System faces challenges like leakages and diversion of food-grains, inclusion/exclusion errors, fake and bogus ration cards, and weak grievance redressal and social audit mechanism.
- Faults in Procurement: Farmers have diverted land from producing coarse grains to the production of rice and wheat due to a minimum support price.
- Further, there is a tremendous wastage of around Rs.50,000 crore annually by both improper accounting and inadequate storage facilities
- Climate Change: The monsoon accounts for around 70% of India’s annual rainfall and irrigates 60% of its net sown area. Changing precipitation patterns and growing frequency and intensity of extreme weather events such as heatwaves, floods are already reducing agricultural productivity in India, posing a serious threat to food security.
- To increase domestic availability amid low Kharif Crop productivity this year (2022), the Government of India has banned the export of broken rice.
- Supply Chain Disruption Due to Unstable Global Order: At a time when the Covid-19 Pandemic had already impacted food supply around the world in 2020, Russia-Ukraine War in 2022 has disrupted the global supply chain and resulted in food scarcity and food inflation.
- Russia and Ukraine represent 27% of the world market for wheat, 26 countries, mainly in Africa, West Asia and Asia, depend on Russia and Ukraine for more than 50% of their wheat imports.
What Should be the Way Forward?
- Moving Towards Sustainable Farming : For ensuring Food Security in India , improvement in productivity through greater use of biotechnology, intensifying watershed management, use of nano-urea and access to micro-irrigation facilities and bridging crop yield gaps across States through collective approach should be at priority.
- There is also a need to look forward towards establishing Special Agriculture Zones through ICT based crop monitoring.
- Towards Precision Agriculture: There is need to increase the use information technology (IT) in agriculture to ensure that crops and soil receive exactly what they need for optimum health and productivity.
- By adopting precision agriculture with high-tech farming practices, farmers’ incomes will increase, input cost of production will be reduced, and many other issues of scale will be addressed.
- Revitalising Aadhaar Seeding of Ration Cards: To speed up the process of Aadhaar linking to ration cards, ground monitoring measures must be taken that will ensure no valid beneficiary is left out of their share of food grains that can give thrust to the aim of zero hunger (Sustainable Development Goal- 2).
- Direct Benefit Transfer (DBT) Through JAM: There is a need to streamline food and fertiliser subsidies into direct benefit transfers to accounts of identified beneficiaries through the JAM trinity platform (Jan Dhan, Aadhaar, and Mobile) that will reduce huge physical movement of foodgrains, provide greater autonomy to beneficiaries to choose their consumption basket and promote financial inclusion.
- Ensuring Transparency in Food Stock Holdings : Using IT to improve communication channels with farmers can help them to get a better deal for their produce while improving storage houses with the latest technology is equally important to deal with natural disasters.
- Further, foodgrain banks can be deployed at block/village level, from which people may get subsidised food grains against food coupons ( that can be provided to Aadhar linked beneficiaries).
- Addressing Issues With an Umbrella Approach: By looking at diverse issues from a common lens, such as inequality, food diversity, indigenous rights, and environmental justice, India can look forward to a sustainable green economy.
खाद्य सुरक्षा अधिनियम ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार किया है
संदर्भ :
- लेख में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 के सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा की गई है, तथा इसके कार्यान्वयन के बाद से खाद्य वितरण में कम हुई लीकेज पर प्रकाश डाला गया है।
- यह आरंभिक अपनाने वाले राज्यों में सुधारों तथा आधार एकीकरण की चुनौतियों को रेखांकित करता है, तथा प्रमुख प्रणालीगत सुधारों पर ध्यान केन्द्रित करने का आह्वान करता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के पक्ष में तर्क
- राज्यों की भूमिका: जिन राज्यों ने PDS सुधार किए थे, उनमें बड़े सुधार हुए हैं।
- 2004-05 तथा 2011-12 के बीच, आरंभिक सुधार करने वाले कई राज्यों में लीकेज में नाटकीय कमी देखी गई: बिहार (91% से 24%), छत्तीसगढ़ (52% से 9%) तथा ओडिशा (76% से 25%)।
- NFSA 2013 द्वारा PDS सुधारों के समान पैकेज को अनिवार्य किए जाने के कारण, आशा थी कि अधिक राज्य सुधार कर सकते हैं।
- NSS का घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES): NFSA 2013 के कार्यान्वयन के बाद पहला बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि सर्वेक्षण है, जो बताता है कि 2022-23 में पीडीएस लीकेज 22% तक कम हो गया है।
डेटा और कार्यप्रणाली को समझना
- लीकेज को परिभाषित करना: पीडीएस “लीकेज” भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा जारी किए गए पीडीएस चावल और गेहूं के अनुपात को संदर्भित करता है जो उपभोक्ताओं तक पहुंचने में विफल रहता है।
- लीकेज का अनुमान लगाना: खाद्य मंत्रालय के मासिक खाद्यान्न बुलेटिन में रिपोर्ट किए गए “ऑफटेक” डेटा के साथ घरेलू पीडीएस खरीद पर एनएसएस डेटा का मिलान करके लीकेज का अनुमान लगाया जाता है।
- अनाज वितरण: अगस्त 2022 से जुलाई 2023 तक, पीडीएस राशन कार्ड धारकों को एनएफएसए अनाज मिला – “प्राथमिकता” परिवारों के लिए प्रति व्यक्ति पाँच किलोग्राम और “अंत्योदय” परिवारों के लिए प्रति माह 35 किलोग्राम। उन्हें दिसंबर 2022 तक पीएमजीकेएवाई अनाज भी मिला, जब कोविड-19 राहत कार्यक्रम समाप्त हो गया।
- दोहरी जाँच: यहाँ प्रस्तुत अनुमानों पर पहुँचने के लिए, टाइड-ओवर राशन, नॉन-एनएफएसए और पीएमजीकेएवाई सहित एनएफएसए के अंतर्गत उठाव का मिलान एचसीईएस 2022-23 पीडीएस खरीद (भुगतान किया गया और मुफ़्त) गेहूँ और चावल के साथ किया जाता है।
- उठाव और खरीद के बीच किसी भी तरह के बेमेल को रिसाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, हालाँकि इसके अन्य कारण भी हो सकते हैं (परिवहन घाटा, आपूर्ति में देरी और इसी तरह)।
कम आंकलन क्यों है?
- राज्यों द्वारा विस्तारित पीडीएस: केंद्रीय योगदान (उदाहरण के लिए, टाइड-ओवर राशन और गैर-एनएफएसए आवंटन) के साथ-साथ राज्य के योगदान (उदाहरण के लिए, स्थानीय खरीद) का उपयोग करके गैर-एनएफएसए लाभार्थियों को पीडीएस अनाज प्रदान करना।
- उदाहरण के लिए, 2012 में पारित छत्तीसगढ़ के खाद्य सुरक्षा अधिनियम ने स्थानीय खरीद का उपयोग करके पीडीएस को अर्ध-सार्वभौमिक बना दिया।
- 17.6%-18.2% के अखिल भारतीय रिसाव अनुमान कम आंकलन हैं, क्योंकि वे केवल केंद्रीय योगदान को ध्यान में रखते हैं, न कि राज्य के योगदान को।
- राज्य वित्तीय सहायता: 14 करोड़ गैर-एनएफएसए लाभार्थी हैं, जिनमें से अधिकतम छह करोड़ को पूरी तरह से राज्य के योगदान से सहायता मिलती है।
- यदि हम राज्य समर्थित गैर-एनएफएसए लाभार्थियों के लिए राज्य के योगदान को कुल उठाव में जोड़ते हैं, तो अखिल भारतीय रिसाव अनुमान 22% तक बढ़ जाता है।
PDS कवरेज पर NFSA का प्रभाव
- PDS सुधार: NFSA 2013 में PDS कवरेज का विस्तार शामिल था जिसका उद्देश्य बहिष्करण त्रुटियों को कम करना था, लेकिन रिसाव को कम करने पर इसका ‘स्पिलओवर प्रभाव’ पड़ा।
- 2004-05 की तुलना में सुधार: एनएफएसए से पहले 2011-12 में, 50% से कम परिवारों के पास राशन कार्ड थे, और केवल 40% ही पीडीएस से कुछ प्राप्त कर रहे थे। उस समय, केवल 24% परिवार वास्तव में पीडीएस का उपयोग कर रहे थे।
- सुधारों द्वारा प्रेरित सुधार: छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों में जहां इस अवधि में पीडीएस कवरेज में काफी वृद्धि हुई।
- उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ में पीडीएस का उपयोग करने वाले परिवारों के अनुपात में तीन गुना वृद्धि (21% से 63% तक) हुई है।
- एचसीईएस के आंकड़ों के अनुसार, 2022-23 में पीडीएस से खरीदारी करने वाले परिवारों का अनुपात और बढ़कर 70% हो गया है। बड़े हिस्से में, यह एनएफएसए के लागू होने का नतीजा है।
- NFSA कवरेज में कमी: बेहतर कवरेज के बावजूद, केंद्र अभी भी 66% आबादी (50% ग्रामीण और 75% शहरी) को कवर करने के एनएफएसए जनादेश से पीछे है। प्रशासनिक डेटा से पता चलता है कि केवल 59% एनएफएसए लाभार्थियों के रूप में पीडीएस का उपयोग करते हैं। HCES के अनुसार, जबकि 70% पीडीएस का उपयोग करते हैं, केवल 57%-61% के पास NFSA राशन कार्ड हैं, जिनमें से लगभग 10% गैर-NFSA लाभार्थी हैं।
- शुरुआती सुधार करने वाले राज्यों जैसे छत्तीसगढ़ और ओडिशा द्वारा किए गए पीडीएस सुधारों में पीडीएस की कीमतों में कमी, खाद्यान्न की डोरस्टेप डिलीवरी, रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण, पंचायतों और स्वयं सहायता समूहों को सौंपकर पीडीएस दुकानों के प्रबंधन का निजीकरण करना शामिल था।
- पीडीएस लीकेज में कमी: 2011-12 तक, शुरुआती सुधार करने वाले राज्यों में पीडीएस लीकेज में पहले से ही काफी कमी आई थी। तब से, अधिक उच्च रिसाव वाले राज्यों ने इसका अनुसरण किया है। एचसीईएस 2022-23 के अनुसार, राजस्थान में लीकेज दर 9%, झारखंड में 21% और उत्तर प्रदेश में 23% थी, जो पहले सभी उच्च रिसाव वाले क्षेत्र थे।
- आधार सुधारों की भूमिका: कई लोगों का मानना है कि आधार के एकीकरण, विशेष रूप से आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण (एबीबीए)
- झारखंड में 2017 में हुए दो सर्वेक्षणों ने इस मुद्दे पर प्रकाश डाला। मुरलीधरन, नीहौस और सुखतंकर द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि ABBA की शुरुआत से पहले ही लीकेज 20% से कम थी।
- ड्रेज़, खेरा और सोमांची ने बताया कि ऑफ़लाइन गाँवों और ABBA गाँवों में खरीद-पात्रता अनुपात (लोगों द्वारा वास्तव में खरीदी गई पात्रता का अनुपात) लगभग समान था – क्रमशः 94% और 93%। दोनों सर्वेक्षणों में भूत कार्ड के बहुत कम सबूत मिले।
- कुछ हद तक, उन राज्यों में लीकेज में और सुधार नहीं हुआ है जहाँ पीडीएस पारंपरिक रूप से बेहतर काम करता था; वास्तव में, कुछ में, अनुमानित लीकेज में वृद्धि हुई है (उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में 2011-12 में 12% से 2022-23 में 25% तक)।
निष्कर्ष
- पीडीएस सामाजिक नीति का एक कार्यात्मक साधन बन गया है, जिसने COVID-19 लॉकडाउन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- हालांकि, यह नकदी हस्तांतरण प्रयोगों और ABBA जैसी अनुपयुक्त प्रौद्योगिकियों जैसे “नवाचारों” के प्रति संवेदनशील बना हुआ है। सरकार को अनावश्यक बदलावों के साथ प्रणाली को पटरी से उतारने के बजाय विलंबित जनगणना और अधिक पौष्टिक खाद्य पदार्थों को शामिल करने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
खाद्य सुरक्षा क्या है?
- खाद्य सुरक्षा की अवधारणा बहुआयामी है। भोजन जीवन के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि सांस लेने के लिए हवा। लेकिन खाद्य सुरक्षा का मतलब सिर्फ दो वक्त का खाना मिलने से कहीं बढ़कर है। इसके निम्नलिखित आयाम हैं:
- उपलब्धता: इसका मतलब है देश के भीतर खाद्य उत्पादन, खाद्य आयात और सरकारी अन्न भंडार में भंडार।
- पहुंच: इसका मतलब है कि बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति की पहुंच में खाद्य पदार्थ उपलब्ध होना।
- सामर्थ्य: इसका मतलब है कि अपनी आहार संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन खरीदने के लिए पर्याप्त धन होना।
- इस प्रकार, किसी देश में खाद्य सुरक्षा तभी सुनिश्चित की जाती है जब सभी के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध हो, अगर सभी के पास स्वीकार्य गुणवत्ता का भोजन खरीदने के साधन हों और अगर पहुंच में कोई बाधा न हो।
भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए वर्तमान ढांचा क्या है?
- संवैधानिक प्रावधान: हालांकि भारतीय संविधान में भोजन के अधिकार के बारे में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के मौलिक अधिकार की व्याख्या मानवीय गरिमा के साथ जीने के अधिकार को शामिल करने के लिए की जा सकती है, जिसमें भोजन और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं का अधिकार शामिल हो सकता है।
- बफर स्टॉक: भारतीय खाद्य निगम (FCI) के पास न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खाद्यान्न खरीदने और विभिन्न स्थानों पर अपने गोदामों में भंडारण करने की मुख्य जिम्मेदारी है और वहां से इसे आवश्यकता के अनुसार राज्य सरकारों को आपूर्ति की जाती है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली: पिछले कुछ वर्षों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली देश में खाद्य अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए सरकार की नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। पीडीएस प्रकृति में पूरक है और इसका उद्देश्य किसी भी वस्तु की पूरी आवश्यकता को उपलब्ध कराना नहीं है।
- पीडीएस के तहत, वर्तमान में गेहूं, चावल, चीनी और केरोसिन जैसी वस्तुओं को वितरण के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को आवंटित किया जा रहा है।
- कुछ राज्य/केंद्र शासित प्रदेश पीडीएस दुकानों के माध्यम से बड़े पैमाने पर उपभोग की अतिरिक्त वस्तुओं जैसे दालें, खाद्य तेल, आयोडीन युक्त नमक, मसाले आदि का वितरण भी करते हैं।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (NFSA): यह खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण में कल्याण से अधिकार आधारित दृष्टिकोण की ओर एक आदर्श बदलाव को दर्शाता है। एनएफएसए ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% को कवर करता है:
- अंत्योदय अन्न योजना: इसमें सबसे गरीब लोग शामिल हैं, जो प्रति माह प्रति परिवार 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने के हकदार हैं।
- प्राथमिकता वाले परिवार (पीएचएच): पीएचएच श्रेणी के अंतर्गत आने वाले परिवार प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने के हकदार हैं।
- राशन कार्ड जारी करने के उद्देश्य से परिवार की 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की सबसे बड़ी महिला को परिवार का मुखिया होना अनिवार्य है।
- इसके अलावा, अधिनियम 6 महीने से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करता है, जो उन्हें एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) केंद्रों के व्यापक नेटवर्क के माध्यम से मुफ्त में पौष्टिक भोजन प्राप्त करने की अनुमति देता है, जिन्हें आंगनवाड़ी केंद्र के रूप में जाना जाता है।
भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- मिट्टी का बिगड़ता स्वास्थ्य: खाद्य उत्पादन का एक प्रमुख तत्व स्वस्थ मिट्टी है क्योंकि वैश्विक खाद्य उत्पादन का लगभग 95% मिट्टी पर निर्भर करता है।
- कृषि रसायनों के अत्यधिक या अनुचित उपयोग, वनों की कटाई और प्राकृतिक आपदाओं के कारण मिट्टी का क्षरण स्थायी खाद्य उत्पादन के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। पृथ्वी की लगभग एक तिहाई मिट्टी पहले ही क्षरित हो चुकी है।
- आक्रामक खरपतवार खतरे: पिछले 15 वर्षों में, भारत ने 10 से अधिक प्रमुख आक्रामक कीटों और खरपतवारों के हमलों का सामना किया है।
- फॉल आर्मीवर्म (कीट) ने 2018 में देश में लगभग पूरी मक्का की फसल को नष्ट कर दिया। 2018 में कीट द्वारा किए गए नुकसान के कारण भारत को 2019 में मक्का का आयात करना पड़ा।
- 2020 में, राजस्थान और गुजरात के जिलों में टिड्डियों के हमले की सूचना मिली थी।
- कुशल प्रबंधन ढांचे का अभाव: भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए सख्त प्रबंधन ढांचे का अभाव है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को खाद्यान्नों के रिसाव और डायवर्जन, समावेशन/बहिष्करण त्रुटियों, नकली और फर्जी राशन कार्ड और कमजोर शिकायत निवारण और सामाजिक लेखा परीक्षा तंत्र जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- खरीद में खामियाँ: किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण मोटे अनाज के उत्पादन से भूमि को चावल और गेहूँ के उत्पादन में बदल दिया है।
- इसके अलावा, अनुचित लेखांकन और अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं दोनों के कारण सालाना लगभग 50,000 करोड़ रुपये की भारी बर्बादी होती है
- जलवायु परिवर्तन: भारत की वार्षिक वर्षा का लगभग 70% मानसून के कारण होता है और यह इसके शुद्ध बोए गए क्षेत्र के 60% हिस्से की सिंचाई करता है। वर्षा के बदलते पैटर्न और हीटवेव, बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता पहले से ही भारत में कृषि उत्पादकता को कम कर रही है, जिससे खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा हो रहा है।
- इस वर्ष (2022) खरीफ फसल की कम उत्पादकता के बीच घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के लिए, भारत सरकार ने टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- अस्थिर वैश्विक व्यवस्था के कारण आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: ऐसे समय में जब कोविड-19 महामारी ने 2020 में दुनिया भर में खाद्य आपूर्ति को पहले ही प्रभावित कर दिया था, 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति शृंखला को बाधित कर दिया है और इसके परिणामस्वरूप खाद्यान्न की कमी और खाद्य मुद्रास्फीति हुई है।
- रूस और यूक्रेन गेहूं के लिए विश्व बाजार का 27% प्रतिनिधित्व करते हैं, 26 देश, मुख्य रूप से अफ्रीका, पश्चिम एशिया और एशिया में, अपने गेहूं के आयात के 50% से अधिक के लिए रूस और यूक्रेन पर निर्भर हैं।
आगे का रास्ता क्या होना चाहिए?
- स्थायी खेती की ओर बढ़ना: भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, जैव प्रौद्योगिकी के अधिक उपयोग के माध्यम से उत्पादकता में सुधार, वाटरशेड प्रबंधन को तेज करना, नैनो-यूरिया का उपयोग और सूक्ष्म सिंचाई सुविधाओं तक पहुँच और सामूहिक दृष्टिकोण के माध्यम से राज्यों में फसल उपज के अंतर को पाटना प्राथमिकता होनी चाहिए।
- आईसीटी आधारित फसल निगरानी के माध्यम से विशेष कृषि क्षेत्र स्थापित करने की दिशा में भी आगे बढ़ने की आवश्यकता है। परिशुद्ध कृषि की ओर: कृषि में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के उपयोग को बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि फसलों और मिट्टी को ठीक वही मिले जो उन्हें इष्टतम स्वास्थ्य और उत्पादकता के लिए चाहिए।
- उच्च तकनीक वाली कृषि पद्धतियों के साथ परिशुद्ध कृषि को अपनाने से किसानों की आय में वृद्धि होगी, उत्पादन की इनपुट लागत कम होगी और पैमाने के कई अन्य मुद्दों का समाधान होगा।
- राशन कार्डों की आधार सीडिंग को पुनर्जीवित करना: राशन कार्डों को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया को तेज करने के लिए, जमीनी निगरानी उपाय किए जाने चाहिए जो यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी वैध लाभार्थी अपने हिस्से के खाद्यान्न से वंचित न रहे, जिससे शून्य भूख (सतत विकास लक्ष्य-2) के लक्ष्य को बल मिल सके।
- JAM के माध्यम से प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): JAM त्रिमूर्ति मंच (जन धन, आधार और मोबाइल) के माध्यम से पहचाने गए लाभार्थियों के खातों में खाद्य और उर्वरक सब्सिडी को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण में सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है, जिससे खाद्यान्नों की भारी भौतिक आवाजाही कम होगी, लाभार्थियों को अपनी खपत टोकरी चुनने के लिए अधिक स्वायत्तता मिलेगी और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलेगा।
- खाद्यान्न भंडारण में पारदर्शिता सुनिश्चित करना: किसानों के साथ संचार चैनलों को बेहतर बनाने के लिए आईटी का उपयोग करने से उन्हें अपनी उपज के लिए बेहतर सौदा पाने में मदद मिल सकती है, जबकि नवीनतम तकनीक के साथ भंडारण घरों में सुधार प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
- इसके अलावा, ब्लॉक/गांव स्तर पर खाद्यान्न बैंक स्थापित किए जा सकते हैं, जहां से लोगों को खाद्य कूपन के बदले सब्सिडी वाले खाद्यान्न मिल सकते हैं (जो आधार से जुड़े लाभार्थियों को प्रदान किए जा सकते हैं)।
- समग्र दृष्टिकोण के साथ मुद्दों का समाधान: असमानता, खाद्य विविधता, स्वदेशी अधिकार और पर्यावरणीय न्याय जैसे विभिन्न मुद्दों को एक ही नजरिए से देखकर, भारत एक स्थायी हरित अर्थव्यवस्था की ओर देख सकता है।