CURRENT AFFAIRS – 24/10/2024
- CURRENT AFFAIRS – 24/10/2024
- Stubble burning violates right to clean environment court / पराली जलाना स्वच्छ पर्यावरण न्यायालय के अधिकार का उल्लंघन है
- Cyberfraud losses could amount to 0.7% of GDP, projects Ministry’s study / साइबर धोखाधड़ी से होने वाला नुकसान सकल घरेलू उत्पाद का 0.7% हो सकता है, मंत्रालय के अध्ययन में अनुमान लगाया गया है
- ‘Germany has given India special status for military purchase’ / ‘जर्मनी ने भारत को सैन्य खरीद के लिए विशेष दर्जा दिया है’
- Ancient meteorite was ‘giant fertiliser bomb’ for life on earth/ प्राचीन उल्कापिंड पृथ्वी पर जीवन के लिए ‘विशाल उर्वरक बम’ था
- Green Energy Goal Wind players fret over land issues / हरित ऊर्जा लक्ष्य पवन ऊर्जा कंपनियां भूमि मुद्दों पर चिंतित हैं
- The Manipur crisis, the issue of managing diversity / मणिपुर संकट, विविधता के प्रबंधन का मुद्दा
CURRENT AFFAIRS – 24/10/2024
Stubble burning violates right to clean environment court / पराली जलाना स्वच्छ पर्यावरण न्यायालय के अधिकार का उल्लंघन है
Syllabus : Prelims Fact
Source : The Hindu
The apex court held that stubble burning undermines citizens’ fundamental right to a pollution-free environment under Article 21.
- It urged proper enforcement of laws and better mechanisms for collecting fines under the Environment Act
Supreme Court’s View on Stubble Burning and Pollution:
- Violation of Article 21: The Supreme Court emphasised that the citizens’ right to live in a pollution-free environment, guaranteed under Article 21 of the Constitution, was being violated by ineffective handling of stubble burning.
- The court criticised the Punjab and Haryana governments for selectively penalising a few offenders while allowing many violators to go unpunished by paying nominal fines.
- The court noted the failure of authorities in effectively implementing environmental laws, impacting citizens’ dignity and right to clean air.
- Lack of Proper Enforcement Mechanism: Justice Oka highlighted the absence of a well-structured system for collecting fines under Section 15 of the Environment (Protection) Act, 1986.
पराली जलाना स्वच्छ पर्यावरण न्यायालय के अधिकार का उल्लंघन है
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पराली जलाना अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के मौलिक अधिकार को कमजोर करता है।
- इसने पर्यावरण अधिनियम के तहत कानूनों के उचित प्रवर्तन और जुर्माना वसूलने के लिए बेहतर तंत्र का आग्रह किया
पराली जलाने और प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
- अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के नागरिकों के अधिकार का उल्लंघन पराली जलाने के अप्रभावी तरीके से किया जा रहा है।
- कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा सरकारों की आलोचना की कि वे चुनिंदा अपराधियों को दंडित कर रही हैं, जबकि कई उल्लंघनकर्ता नाममात्र का जुर्माना देकर बिना सजा के रह रहे हैं।
- कोर्ट ने पर्यावरण कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करने में अधिकारियों की विफलता पर ध्यान दिया, जिससे नागरिकों की गरिमा और स्वच्छ हवा के अधिकार पर असर पड़ रहा है।
- उचित प्रवर्तन तंत्र का अभाव: न्यायमूर्ति ओका ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 15 के तहत जुर्माना वसूलने के लिए एक सुव्यवस्थित प्रणाली की अनुपस्थिति पर प्रकाश डाला।
Cyberfraud losses could amount to 0.7% of GDP, projects Ministry’s study / साइबर धोखाधड़ी से होने वाला नुकसान सकल घरेलू उत्पाद का 0.7% हो सकता है, मंत्रालय के अध्ययन में अनुमान लगाया गया है
Syllabus : Prelims Fact
Source : The Hindu
Indians are projected to lose over ₹1.2 lakh crore to cyberfrauds in the coming year, according to a study by the Indian Cyber Crime Coordination Centre (I4C).
- Many scams originate from China and South East Asia, with funds often transferred abroad through cryptocurrency or ATMs.
Analysis of the news:
- Online financial scams, driven significantly by mule bank accounts, could potentially siphon off 0.7% of India’s GDP.
- A large portion of the defrauded money is sent overseas, with many scams originating from China or entities linked to China.
- Domestically run scams also contribute, with funds withdrawn from ATMs after passing through several accounts.
- I4C identifies approximately 4,000 mule bank accounts daily.
Indian Cyber Crime Coordination Centre (I4C)
- The Indian Cyber Crime Coordination Centre (I4C) is a government initiative to deal with cybercrime in India, in a coordinated and effective manner.It is affiliated to the Ministry of Home Affairs, Government of India.
- It was approved in October 2018 with a proposed amount of ₹415.86 crore.
- In June 2020, on the recommendation of I4C, the Government of India banned 59 Chinese origin mobile apps.
- In 2023, Google launched DigiKavach to protect Indian users from online fraud, to work with Indian Cyber Crime Coordination Centre
- The government is working to curb scams involving “scam compounds” in South East Asia and is collaborating with banks to monitor suspicious transactions.
साइबर धोखाधड़ी से होने वाला नुकसान सकल घरेलू उत्पाद का 0.7% हो सकता है, मंत्रालय के अध्ययन में अनुमान लगाया गया है
भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) के एक अध्ययन के अनुसार, आने वाले वर्ष में भारतीयों को साइबर धोखाधड़ी के कारण 1.2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होने का अनुमान है।
- कई घोटाले चीन और दक्षिण पूर्व एशिया से शुरू होते हैं, जिनमें अक्सर क्रिप्टोकरेंसी या एटीएम के माध्यम से धन विदेश में स्थानांतरित किया जाता है।
समाचार का विश्लेषण:
- ऑनलाइन वित्तीय घोटाले, जो मुख्य रूप से खच्चर बैंक खातों द्वारा संचालित होते हैं, संभावित रूप से भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 7% हिस्सा चुरा सकते हैं।
- धोखाधड़ी के पैसे का एक बड़ा हिस्सा विदेशों में भेजा जाता है, जिसमें से कई घोटाले चीन या चीन से जुड़ी संस्थाओं से शुरू होते हैं।
- घरेलू स्तर पर चलाए जाने वाले घोटाले भी इसमें योगदान देते हैं, जिसमें कई खातों से गुज़रने के बाद एटीएम से पैसे निकाले जाते हैं।
- I4C प्रतिदिन लगभग 4,000 खच्चर बैंक खातों की पहचान करता है।
भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C)
- भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) भारत में साइबर अपराध से समन्वित और प्रभावी तरीके से निपटने के लिए एक सरकारी पहल है। यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय से संबद्ध है।
- अक्टूबर 2018 में इसे ₹415.86 करोड़ की प्रस्तावित राशि के साथ मंज़ूरी दी गई थी।
- जून 2020 में, I4C की सिफ़ारिश पर, भारत सरकार ने 59 चीनी मूल के मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया।
- 2023 में, Google ने भारतीय उपयोगकर्ताओं को ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचाने के लिए, भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र के साथ काम करने के लिए DigiKavach लॉन्च किया। सरकार दक्षिण पूर्व एशिया में “घोटाला यौगिकों” से जुड़े घोटालों पर अंकुश लगाने के लिए काम कर रही है और संदिग्ध लेनदेन की निगरानी के लिए बैंकों के साथ सहयोग कर रही है।
‘Germany has given India special status for military purchase’ / ‘जर्मनी ने भारत को सैन्य खरीद के लिए विशेष दर्जा दिया है’
Syllabus : Prelims Fact
Source : The Hindu
Germany has granted India special status to expedite military procurement approvals and enhance defence collaboration.
Special Status Granted by Germany to India
- Purpose: Germany has accorded special status to India to accelerate approvals for military purchases.
- Focus Paper: The German Cabinet has issued a focus paper favouring swift approval for military deals with India.
- Streamlined Process: The special status aims to reduce bureaucratic delays, enhancing the speed of defence procurement processes.
Potential Benefits
- Enhanced Military Cooperation: Strengthened defence ties could lead to improved collaboration in military technology and innovation.
- P-75I Submarine Deal: It will help in multi-billion dollar P-75I submarine deal, involving six advanced conventional submarines for the Indian Navy.
- Technology Transfer: Special status may facilitate technology transfer agreements, enhancing India’s indigenous defence manufacturing capabilities.
- Strategic Partnerships: Increased military engagement can foster stronger geopolitical alliances, crucial in the context of regional security dynamics.
- Timely Acquisition: Accelerated approvals ensure that India can quickly acquire necessary military equipment, enhancing its defence readiness.
‘जर्मनी ने भारत को सैन्य खरीद के लिए विशेष दर्जा दिया है’
जर्मनी ने सैन्य खरीद की मंजूरी में तेजी लाने और रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए भारत को विशेष दर्जा दिया है।
- जर्मनी द्वारा भारत को दिया गया विशेष दर्जा
- उद्देश्य: जर्मनी ने सैन्य खरीद के लिए मंजूरी में तेजी लाने के लिए भारत को विशेष दर्जा दिया है।
- फोकस पेपर: जर्मन कैबिनेट ने भारत के साथ सैन्य सौदों के लिए तेजी से मंजूरी देने के पक्ष में एक फोकस पेपर जारी किया है।
- सुव्यवस्थित प्रक्रिया: विशेष दर्जे का उद्देश्य नौकरशाही देरी को कम करना, रक्षा खरीद प्रक्रियाओं की गति को बढ़ाना है।
- संभावित लाभ
- बढ़ा हुआ सैन्य सहयोग: मजबूत रक्षा संबंधों से सैन्य प्रौद्योगिकी और नवाचार में बेहतर सहयोग हो सकता है।
- पी-75आई पनडुब्बी सौदा: यह भारतीय नौसेना के लिए छह उन्नत पारंपरिक पनडुब्बियों से जुड़े बहु-अरब डॉलर के पी-75आई पनडुब्बी सौदे में मदद करेगा।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: विशेष दर्जा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों को सुगम बना सकता है, जिससे भारत की स्वदेशी रक्षा विनिर्माण क्षमताएं बढ़ सकती हैं।
- रणनीतिक साझेदारी: बढ़ी हुई सैन्य भागीदारी मजबूत भू-राजनीतिक गठबंधनों को बढ़ावा दे सकती है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।
- समय पर अधिग्रहण: त्वरित मंजूरी यह सुनिश्चित करती है कि भारत जल्दी से आवश्यक सैन्य उपकरण हासिल कर सकता है, जिससे उसकी रक्षा तत्परता बढ़ेगी।
Ancient meteorite was ‘giant fertiliser bomb’ for life on earth/ प्राचीन उल्कापिंड पृथ्वी पर जीवन के लिए ‘विशाल उर्वरक बम’ था
Syllabus : Prelims Fact
Source : The Hindu
A giant meteorite that struck Earth 3.26 billion years ago may have been crucial for the early evolution of life by acting as a “fertiliser bomb.”
- This impact delivered essential nutrients like phosphorus and iron, promoting the proliferation of single-celled organisms.
Impact of the Meteorite
- A massive meteorite, approximately 37-58 km in diameter, struck Earth about 3.26 billion years ago, significantly larger than the asteroid that caused the dinosaurs’ extinction.
- The meteorite was a carbonaceous chondrite rich in carbon, phosphorus, and iron, essential nutrients for early life forms.
Devastation from the Impact
- The impact was so powerful that it vaporised both the meteorite and the surface materials it struck, creating a vast cloud of dust and debris that enveloped the planet.
- This cloud turned the sky dark for hours, resulting in a drastic rise in atmospheric temperatures and potentially boiling the upper layers of the oceans.
Nutrient Enrichment and Evolution
- Despite the initial devastation, the nutrients released by the impact acted as a “giant fertiliser bomb,” enriching the environment for single-celled organisms such as bacteria and archaea.
- Researchers found evidence in ancient rocks from the Barberton Greenstone Belt in South Africa, indicating that life rebounded quickly after the impact.
- The influx of phosphorus facilitated crucial biochemical processes, while iron mixed into shallower waters provided energy sources for thriving microbial communities, contributing to the early evolution of life on Earth.
प्राचीन उल्कापिंड पृथ्वी पर जीवन के लिए ‘विशाल उर्वरक बम’ था
3.26 अरब साल पहले धरती पर गिरा एक विशाल उल्कापिंड शायद “उर्वरक बम” के रूप में कार्य करके जीवन के प्रारंभिक विकास के लिए महत्वपूर्ण रहा होगा।
- इस प्रभाव ने फॉस्फोरस और आयरन जैसे आवश्यक पोषक तत्व प्रदान किए, जिससे एकल-कोशिका वाले जीवों के प्रसार को बढ़ावा मिला।
उल्कापिंड का प्रभाव
- लगभग 26 अरब साल पहले एक विशाल उल्कापिंड, जिसका व्यास लगभग 37-58 किमी था, धरती से टकराया, जो डायनासोर के विलुप्त होने का कारण बनने वाले क्षुद्रग्रह से काफी बड़ा था।
- उल्कापिंड कार्बन, फॉस्फोरस और आयरन से भरपूर एक कार्बनयुक्त चोंड्राइट था, जो प्रारंभिक जीवन रूपों के लिए आवश्यक पोषक तत्व हैं।
- प्रभाव से तबाही
- प्रभाव इतना शक्तिशाली था कि इसने उल्कापिंड और उससे टकराने वाली सतह की सामग्री दोनों को वाष्पीकृत कर दिया, जिससे धूल और मलबे का एक विशाल बादल बन गया जिसने ग्रह को घेर लिया।
- इस बादल ने घंटों तक आसमान को काला कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप वायुमंडलीय तापमान में भारी वृद्धि हुई और संभवतः महासागरों की ऊपरी परतें उबल गईं।
- पोषक तत्वों का संवर्धन और विकास
- शुरुआती तबाही के बावजूद, प्रभाव से निकले पोषक तत्वों ने “विशाल उर्वरक बम” के रूप में काम किया, जिससे बैक्टीरिया और आर्किया जैसे एकल-कोशिका वाले जीवों के लिए पर्यावरण समृद्ध हुआ।
- शोधकर्ताओं को दक्षिण अफ्रीका में बार्बरटन ग्रीनस्टोन बेल्ट की प्राचीन चट्टानों में साक्ष्य मिले, जो दर्शाते हैं कि प्रभाव के तुरंत बाद जीवन फिर से पनप गया।
- फॉस्फोरस के प्रवाह ने महत्वपूर्ण जैव रासायनिक प्रक्रियाओं को सुगम बनाया, जबकि उथले पानी में मिश्रित लोहे ने सूक्ष्मजीव समुदायों को ऊर्जा स्रोत प्रदान किए, जिसने पृथ्वी पर जीवन के शुरुआती विकास में योगदान दिया।
Green Energy Goal Wind players fret over land issues / हरित ऊर्जा लक्ष्य पवन ऊर्जा कंपनियां भूमि मुद्दों पर चिंतित हैं
Syllabus : Prelims Fact
Source : The Hindu
The Union Ministry of New and Renewable Energy expresses confidence in exceeding India’s renewable energy targets by 2030, particularly in wind energy.However, challenges related to land acquisition pose significant hurdles to achieving the ambitious installation goals for wind projects.
Overview of Renewable Energy Targets
- The Union Ministry of New and Renewable Energy (MNRE) is optimistic about exceeding India’s target of 500 GW in renewable energy capacity by 2030, which includes 100 GW from wind energy.
Current Renewable Energy Status
- India has surpassed 200 GW of renewable energy capacity, currently standing at 210 GW.
- There is a significant installation pipeline of nearly 160 GW, with an additional 100 GW under tendering.
Wind Energy Capacity
- India ranks as the fourth largest globally in installed wind energy capacity.
- The country installed 2.8 GW of wind energy last year and is projected to add 4.5-5 GW this year.
- To meet future goals, India needs to scale up installations to around 10 GW annually.
Challenges in Development
- Challenges such as land acquisition and infrastructure development have been hindering the development of wind energy.
- There is a need for better coordination between the Centre and States to identify suitable land for wind projects.
हरित ऊर्जा लक्ष्य पवन ऊर्जा कंपनियां भूमि मुद्दों पर चिंतित हैं
केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने 2030 तक भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पार करने का विश्वास व्यक्त किया है, विशेष रूप से पवन ऊर्जा में। हालांकि, भूमि अधिग्रहण से संबंधित चुनौतियां पवन परियोजनाओं के लिए महत्वाकांक्षी स्थापना लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करती हैं।
अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों का अवलोकन
- केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) 2030 तक भारत के अक्षय ऊर्जा क्षमता के 500 गीगावाट के लक्ष्य को पार करने के बारे में आशावादी है, जिसमें पवन ऊर्जा से 100 गीगावाट शामिल है।
वर्तमान अक्षय ऊर्जा स्थिति
- भारत ने अक्षय ऊर्जा क्षमता के 200 गीगावाट को पार कर लिया है, जो वर्तमान में 210 गीगावाट है।
- लगभग 160 गीगावाट की महत्वपूर्ण स्थापना पाइपलाइन है, जिसमें अतिरिक्त 100 गीगावाट निविदा के अधीन है।
पवन ऊर्जा क्षमता
- भारत स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता में वैश्विक रूप से चौथे सबसे बड़े देश के रूप में स्थान रखता है।
- देश ने पिछले वर्ष 8 गीगावाट पवन ऊर्जा स्थापित की और इस वर्ष 4.5-5 गीगावाट जोड़ने का अनुमान है।
- भविष्य के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, भारत को प्रति वर्ष लगभग 10 गीगावाट तक स्थापना को बढ़ाने की आवश्यकता है।
विकास में चुनौतियाँ
- भूमि अधिग्रहण और बुनियादी ढाँचे के विकास जैसी चुनौतियाँ पवन ऊर्जा के विकास में बाधा बन रही हैं।
- पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए उपयुक्त भूमि की पहचान करने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है।
The Manipur crisis, the issue of managing diversity / मणिपुर संकट, विविधता के प्रबंधन का मुद्दा
Editorial Analysis: Syllabus : GS 2 : Indian Polity & Governance
Source : The Hindu
Context :
- The article discusses the constitutional challenges in managing the escalating violence in Manipur.
- It highlights the role of special provisions under Article 371 in other states like Sikkim and Tripura to manage diversity and preserve cultural identities.
- The lack of similar robust provisions for Manipur raises concerns about governance and representation.
Introduction
- Yet another round of escalation of violence in Manipur has reportedly led to the Chief Minister of the State making multiple demands that include greater control over security operations. This means that the Chief Minister has not been in charge for some time.
- Another jarring revelation, as in media reports, is even the supposed invocation of Article 355 of the Constitution, where the Union has a duty to protect States against external aggression and internal disturbance.
- The breakdown of the constitutional machinery in Manipur is an open secret. The alarming situation raises significant questions about the capacity of the Constitution to reconcile identitarian differences.
The basis for ‘special provisions’
- Diversity management is a unique feature of the Indian Constitution.
- In keeping with the unique problems of different States, not just erstwhile Jammu and Kashmir, several others such as Maharashtra, Gujarat, Nagaland, Assam, Manipur, Andhra Pradesh, Sikkim, Mizoram, Arunachal Pradesh and Karnataka were considered entitled to “special provisions”.
- The circumstances warranting such “special” provisions have been either to allay concerns over ensuring equitable development or to provide safeguards to preserve cultural identities. Federalism is not a matter of choice but compulsion in a huge and diverse nation such as India.
- Reconciliation of competing interests in north-eastern states: The Constitution has evolved to reconcile seemingly competing and even conflicting interests of identities in several north-eastern States.
- A chief feature of such reconciliation within the constitutional scheme has been to institutionalise a scheme of power sharing and representation and guaranteed autonomy in governance.
- The purpose of such reconciliatory measures is to ensure a sensitivity to the concerns of group identities and their respective socio-political backgrounds, and allow the Article 371F(f) presence of such identities to engender political stability rather than sow discord and fragment society.
- It may be of value to revisit examples of such constitutional pragmatism as the number of deaths and displaced people is increasing each day and any indifference to the fast deteriorating situation will not be in national interest.
The accession of Sikkim and Article 371F
- The accession of Sikkim to India: in 1975 led to the inclusion of Article 371F.
- These “special provisions”: included Article 371F(f) which empower Parliament to protect “the rights and interests of different sections of the population”.
- Article 371F(g): also provided that the Governor would have the special responsibility for a scheme of “equitable arrangement for ensuring the social and economic advancement of different sections of the population of Sikkim….”
- The broad import of Article 371F: envisaged power sharing through representation and the preservation of cultural autonomy to achieve the goal of political stability.
- The Representation of Peoples Act 1951: was amended to reflect the scheme of Article 371F(f) and seats were earmarked for different communities in the Legislative Assembly.
- This arrangement came to be challenged along with the constitutionality of Article 371F(f) in R.C. Poudyal (1993) before the Supreme Court of India as the increased representation of the Bhutia-Lepcha community was alleged to be in the teeth of norms of proportionate reservation.
- In upholding the constitutionality of Article 371F(f): and the amendment to the Representation of Peoples Act 1951, the Court reasoned that the increased representation of the Bhutia-Lepcha community was an inheritance of the socio-political history of Sikkim, which necessitated the framing of Article 371F.
What was the case of R.C. Poudyal (1993)?
- A broader discourse which the Court had concluded as part of a scheme of “accommodations and adjustments” to facilitate the co-existence of different tribal identities in Sikkim.
- The Court ruling: It held that “historical considerations and compulsions do justify inequality”.
- The proportionality of seats reserved: for the Bhutia-Lepcha community as justified to protect the identity of the community and a political process to ensure political stability.
- Explicit recognition of group identities: as the basis of power sharing and representation in governance.
The case of Tripura and peace
- Tripura emerged as an example of peace brokered through the Constitution at the height of the insurgency movement.
- The Sixth Schedule of the Constitution: provides for the administration of tribal areas by devolving power to district and regional councils which are empowered to make laws on various areas such as education, social customs, alienation of land and usage of forests, and establishment of village and town committees.
- Application to Tripura: However, the Sixth Schedule was not made applicable to Tripura until 1984.
- By virtue of the 49th Constitutional Amendment, the provisions of the Sixth Schedule were made applicable to the tribal inhabited areas of Tripura.
The Tripura Accord and Legislative Autonomy
- Tripura Accord of 1988: The legislative autonomy accorded by the Sixth Schedule devolved markedly greater powers to the district council to exercise discretion regarding the application of Union laws to Scheduled Areas.
- Thus, Tripura Accord signed in 1988 between the Union Government, the State government and the Tripura National Volunteers (TNV), a militant group which even sought secession.
- Sub-article (3B) in Article 332 (1992): The accord reserved a third of the seats in the State Assembly to the Scheduled Tribe population — beyond the proportion of their population in the total population. Consequently, sub-article (3B) in Article 332 was inserted in 1992.
Legal Challenge and the Supreme Court’s Ruling
- Subrata Acharjee (2002). The disproportionate representation of the tribal population was challenged in the case.
- The Supreme Court took into account the background of the accord which required violence to be abjured and efforts at securing stability in the region.
- The Court ultimately rejected the contention seeking proportional reservation based on “arithmetical precision” and reiterated the scheme of “accommodations and adjustments”.
- Temporary Measure for Inclusive Governance: It concluded that Article 332(3B) was inserted to give “greater share” in governance, as per the terms of accord.
- Reservation Rulings: The Court ruled that the reservation scheme was not violative of the scheme in Article 332(3) and Article 170 as it was a temporary measure to ensure an inclusive scheme of governance in Scheduled Tribe-inhabited areas.
- Settling differences: The approval of the scheme of power sharing to reconcile differences through the Constitution was found to be in order despite it being a unique measure not in “symmetry” with the Constitution.
Comparisons with Manipur and Assam
- Manipur under Article 371C: as was the case with Tripura, the Sixth Schedule does not apply to the State of Manipur.
- Manipur is governed by Article 371C which provides for the creation of a Hill Area Committee consisting of elected representatives from such areas.
- The approval or concurrence of the Hill Area Committee regarding matters affecting the governance of such areas is not necessary.
- Recent Supreme Court Judgment on Assam: The latest judgment of the apex court on citizenship upholding different cut-off dates for Assam is another example of accommodation due to its geographical location.
- The Court preferred promotion of fraternity.
Words that Manipur needs to ponder over
- Manipur Hill Areas Autonomous District Council Act, 2000: Unlike the Sixth Schedule, the establishment of a “District Council” in Manipur is governed under a separate statute, i.e., the Manipur Hill Areas Autonomous District Council Act, 2000.
- Incorporation of District Council: Under the statute, a “District Council” is required to be incorporated, and membership to the council is based on classification as a “Scheduled Tribe”.
- Absence of specific provisions: Strangely, unlike the veto power possessed by the Scheduled Tribes in States such as Nagaland, Sikkim, and Tripura, no specific provisions exist in the case of Manipur.
- Tensions in Manipur: In the background of tensions in Manipur, concerns over representation, allocation of resources, and perceived domination of any community have heightened anxieties and exacerbated social division.
मणिपुर संकट, विविधता के प्रबंधन का मुद्दा
संदर्भ :
- लेख मणिपुर में बढ़ती हिंसा के प्रबंधन में संवैधानिक चुनौतियों पर चर्चा करता है।
- यह सिक्किम और त्रिपुरा जैसे अन्य राज्यों में विविधता को प्रबंधित करने और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के लिए अनुच्छेद 371 के तहत विशेष प्रावधानों की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
- मणिपुर के लिए समान मजबूत प्रावधानों की कमी शासन और प्रतिनिधित्व के बारे में चिंताएँ पैदा करती है।
परिचय
- मणिपुर में हिंसा के बढ़ने के एक और दौर के कारण कथित तौर पर राज्य के मुख्यमंत्री ने कई माँगें की हैं, जिनमें सुरक्षा अभियानों पर अधिक नियंत्रण शामिल है। इसका मतलब है कि मुख्यमंत्री कुछ समय से प्रभारी नहीं हैं।
- मीडिया रिपोर्टों के अनुसार एक और चौंकाने वाला खुलासा संविधान के अनुच्छेद 355 का कथित आह्वान भी है, जहाँ संघ का कर्तव्य है कि वह राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाए।
- मणिपुर में संवैधानिक तंत्र का टूटना एक खुला रहस्य है। चिंताजनक स्थिति पहचान संबंधी मतभेदों को समेटने की संविधान की क्षमता के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है।
‘विशेष प्रावधानों’ का आधार
- विविधता प्रबंधन भारतीय संविधान की एक अनूठी विशेषता है।
- विभिन्न राज्यों की अनूठी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, न केवल तत्कालीन जम्मू और कश्मीर, बल्कि महाराष्ट्र, गुजरात, नागालैंड, असम, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और कर्नाटक जैसे कई अन्य राज्यों को “विशेष प्रावधानों” का हकदार माना गया।
- ऐसे “विशेष” प्रावधानों की आवश्यकता वाली परिस्थितियाँ या तो समान विकास सुनिश्चित करने की चिंताओं को दूर करने या सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के लिए सुरक्षा उपाय प्रदान करने के लिए रही हैं। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण राष्ट्र में संघवाद पसंद का विषय नहीं बल्कि मजबूरी है।
- उत्तर-पूर्वी राज्यों में प्रतिस्पर्धी हितों का सामंजस्य: संविधान कई उत्तर-पूर्वी राज्यों में पहचान के प्रतीत होने वाले प्रतिस्पर्धी और यहां तक कि परस्पर विरोधी हितों का सामंजस्य स्थापित करने के लिए विकसित हुआ है।
- संवैधानिक योजना के भीतर इस तरह के सामंजस्य की एक प्रमुख विशेषता सत्ता के बंटवारे और प्रतिनिधित्व की एक योजना को संस्थागत बनाना और शासन में स्वायत्तता की गारंटी देना है।
- इस तरह के मेलमिलाप के उपायों का उद्देश्य समूह पहचानों और उनकी संबंधित सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि की चिंताओं के प्रति संवेदनशीलता सुनिश्चित करना है, और अनुच्छेद 371F(f) के तहत ऐसी पहचानों की मौजूदगी को राजनीतिक स्थिरता पैदा करने की अनुमति देना है, न कि समाज में कलह और विखंडन पैदा करना।
- ऐसी संवैधानिक व्यावहारिकता के उदाहरणों पर फिर से विचार करना उपयोगी हो सकता है, क्योंकि मौतों और विस्थापित लोगों की संख्या हर दिन बढ़ रही है और तेजी से बिगड़ती स्थिति के प्रति कोई भी उदासीनता राष्ट्रीय हित में नहीं होगी।
सिक्किम का विलय और अनुच्छेद 371F
- सिक्किम का भारत में विलय: 1975 में अनुच्छेद 371F को शामिल किया गया।
- इन “विशेष प्रावधानों” में अनुच्छेद 371F(f) शामिल है, जो संसद को “जनसंख्या के विभिन्न वर्गों के अधिकारों और हितों” की रक्षा करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 371एफ(जी): इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि राज्यपाल के पास सिक्किम की आबादी के विभिन्न वर्गों की सामाजिक और आर्थिक उन्नति सुनिश्चित करने के लिए “समान व्यवस्था” की योजना के लिए विशेष जिम्मेदारी होगी….
- अनुच्छेद 371एफ का व्यापक अर्थ: राजनीतिक स्थिरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिनिधित्व और सांस्कृतिक स्वायत्तता के संरक्षण के माध्यम से सत्ता साझा करने की परिकल्पना की गई है।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951: अनुच्छेद 371एफ(एफ) की योजना को प्रतिबिंबित करने के लिए संशोधित किया गया था और विधान सभा में विभिन्न समुदायों के लिए सीटें निर्धारित की गई थीं।
- इस व्यवस्था को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आर.सी. पौड्याल (1993) में अनुच्छेद 371एफ(एफ) की संवैधानिकता के साथ चुनौती दी गई क्योंकि भूटिया-लेप्चा समुदाय के बढ़े हुए प्रतिनिधित्व को आनुपातिक आरक्षण के मानदंडों के विरुद्ध बताया गया था।
- अनुच्छेद 371एफ(एफ) की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए: तथा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन करते हुए, न्यायालय ने तर्क दिया कि भूटिया-लेप्चा समुदाय का बढ़ा हुआ प्रतिनिधित्व सिक्किम के सामाजिक-राजनीतिक इतिहास की विरासत है, जिसके लिए अनुच्छेद 371एफ का निर्माण आवश्यक था।
आर.सी. पौड्याल (1993) का मामला क्या था?
- सिक्किम में विभिन्न जनजातीय पहचानों के सह-अस्तित्व को सुविधाजनक बनाने के लिए न्यायालय ने “समायोजन और समायोजन” की योजना के हिस्से के रूप में एक व्यापक चर्चा का निष्कर्ष निकाला था।
- न्यायालय का निर्णय: इसने माना कि “ऐतिहासिक विचार और मजबूरियाँ असमानता को उचित ठहराती हैं”।
- भूटिया-लेप्चा समुदाय के लिए आरक्षित सीटों की आनुपातिकता समुदाय की पहचान की रक्षा करने और राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक राजनीतिक प्रक्रिया के रूप में उचित है।
- समूह पहचान की स्पष्ट मान्यता: शासन में सत्ता के बंटवारे और प्रतिनिधित्व के आधार के रूप में।
त्रिपुरा और शांति का मामला
- त्रिपुरा उग्रवाद आंदोलन के चरम पर संविधान के माध्यम से शांति स्थापित करने के उदाहरण के रूप में उभरा।
- संविधान की छठी अनुसूची: जिला और क्षेत्रीय परिषदों को शक्ति सौंपकर आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन का प्रावधान करती है, जिन्हें शिक्षा, सामाजिक रीति-रिवाजों, भूमि के हस्तांतरण और वनों के उपयोग तथा ग्राम और नगर समितियों की स्थापना जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर कानून बनाने का अधिकार है।
- त्रिपुरा पर लागू: हालाँकि, छठी अनुसूची 1984 तक त्रिपुरा पर लागू नहीं हुई थी।
- 49वें संविधान संशोधन के आधार पर, छठी अनुसूची के प्रावधानों को त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू किया गया।
त्रिपुरा समझौता और विधायी स्वायत्तता
- 1988 का त्रिपुरा समझौता: छठी अनुसूची द्वारा दी गई विधायी स्वायत्तता ने अनुसूचित क्षेत्रों पर संघ के कानूनों के आवेदन के संबंध में विवेक का प्रयोग करने के लिए जिला परिषद को उल्लेखनीय रूप से अधिक शक्तियाँ प्रदान कीं।
- इस प्रकार, 1988 में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और त्रिपुरा नेशनल वॉलंटियर्स (टीएनवी) के बीच त्रिपुरा समझौता हुआ, जो एक उग्रवादी समूह था और जिसने अलगाव की भी मांग की थी।
- अनुच्छेद 332 (1992) में उप-अनुच्छेद (3बी): समझौते ने राज्य विधानसभा में अनुसूचित जनजाति की आबादी के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित कीं – कुल आबादी में उनकी आबादी के अनुपात से परे। परिणामस्वरूप, अनुच्छेद 332 में उप-अनुच्छेद (3बी) 1992 में डाला गया था।
कानूनी चुनौती और सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- सुब्रत आचार्य (2002)। इस मामले में आदिवासी आबादी के अनुपातहीन प्रतिनिधित्व को चुनौती दी गई थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने समझौते की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखा, जिसके अनुसार हिंसा को त्यागना और क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने के प्रयासों की आवश्यकता थी।
- अंततः न्यायालय ने “अंकगणितीय परिशुद्धता” के आधार पर आनुपातिक आरक्षण की मांग करने वाले तर्क को खारिज कर दिया और “समायोजन और समायोजन” की योजना को दोहराया।
- समावेशी शासन के लिए अस्थायी उपाय: इसने निष्कर्ष निकाला कि अनुच्छेद 332 (3बी) समझौते की शर्तों के अनुसार शासन में “अधिक हिस्सा” देने के लिए डाला गया था।
- आरक्षण संबंधी निर्णय: न्यायालय ने निर्णय दिया कि आरक्षण योजना अनुच्छेद 332(3) और अनुच्छेद 170 में वर्णित योजना का उल्लंघन नहीं करती है, क्योंकि यह अनुसूचित जनजाति के निवास वाले क्षेत्रों में शासन की समावेशी योजना सुनिश्चित करने के लिए एक अस्थायी उपाय था।
- मतभेदों को सुलझाना: संविधान के माध्यम से मतभेदों को सुलझाने के लिए सत्ता के बंटवारे की योजना को मंजूरी देना उचित पाया गया, भले ही यह संविधान के साथ “समरूपता” में न हो।
मणिपुर और असम के साथ तुलना
- अनुच्छेद 371सी के तहत मणिपुर: जैसा कि त्रिपुरा के मामले में था, छठी अनुसूची मणिपुर राज्य पर लागू नहीं होती है।
- मणिपुर अनुच्छेद 371सी द्वारा शासित है, जो ऐसे क्षेत्रों से निर्वाचित प्रतिनिधियों से मिलकर एक पहाड़ी क्षेत्र समिति के निर्माण का प्रावधान करता है।
- ऐसे क्षेत्रों के शासन को प्रभावित करने वाले मामलों के बारे में पहाड़ी क्षेत्र समिति की स्वीकृति या सहमति आवश्यक नहीं है। असम पर सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय: असम के लिए अलग-अलग कट-ऑफ तिथियों को बरकरार रखने वाला नागरिकता पर सर्वोच्च न्यायालय का नवीनतम निर्णय इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण समायोजन का एक और उदाहरण है।
- न्यायालय ने भाईचारे को बढ़ावा देने को प्राथमिकता दी।
मणिपुर को जिन शब्दों पर विचार करने की आवश्यकता है
- मणिपुर पहाड़ी क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद अधिनियम, 2000: छठी अनुसूची के विपरीत, मणिपुर में “जिला परिषद” की स्थापना एक अलग क़ानून, यानी मणिपुर पहाड़ी क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद अधिनियम, 2000 के तहत शासित है।
- जिला परिषद का निगमन: क़ानून के तहत, एक “जिला परिषद” को निगमित किया जाना आवश्यक है, और परिषद की सदस्यता “अनुसूचित जनजाति” के रूप में वर्गीकरण पर आधारित है।
- विशिष्ट प्रावधानों का अभाव: अजीब बात है कि नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में अनुसूचित जनजातियों के पास वीटो शक्ति के विपरीत, मणिपुर के मामले में कोई विशिष्ट प्रावधान मौजूद नहीं है।
- मणिपुर में तनाव: मणिपुर में तनाव की पृष्ठभूमि में, प्रतिनिधित्व, संसाधनों के आवंटन और किसी भी समुदाय के कथित वर्चस्व को लेकर चिंताओं ने चिंताओं को बढ़ा दिया है और सामाजिक विभाजन को बढ़ा दिया है।